बेतिया का महान ध्रुपद संगीत घराना

 आपके घर के पास ऐसा एक महान घराना हो जो उस संगीत परंपरा को संभाले हो, जिससे जसराज मिश्र,श्याम मालिक,कुंज बिहारी उमा चरण, जयशंकर मिश्र जैसे महान संगीतज्ञ आते हो, जिस घराने से संगीत सीख कर माना जाता है रामदास और तानसेन महान हो गए, तो गांव, वह क्षेत्र वैसे ही धन्य हो जाता है। हम बात कर रहे हैं बेतिया घराने की।

 कहा जाता है बनारस घराने में भी ध्रुपद गायकी बेतिया से ही गई है। बड़े रामदास बेतिया घराने की शिष्य थे। बनारस घराने में जहां तानसेन की ध्रुपद शैली अपना ली, वही बेत्तिया घराना हरिदास स्वामी के शैली पर अडिग रहा। बेत्तिया की शैली में भाव द्वारा गायन को सजीव करने की विशिष्ट कला है जो विरले ही, अन्य किसी घराने में देखने को मिलती है। यह ध्रुपद की उन शैलियों में से एक है, जो ध्रुपद की वास्तविक मौलिकताओं को बनाए हुए हैं। नौहर और खंडार वाणी का प्रयोग इस शैली को अलग रूप देता है।

इस घराने की उत्पत्ति 13वी से 14वीं शताब्दी में मानी जाती है, कंगाली मलिक से इस संगीत की महान परंपरा का जन्म हुआ, जिसे बाद में जसराज और युवराज मिश्र ने शाहजहां के दरबार में प्रसिद्धि दिलाई। जहां इन्हे मालिक की उपाधि दी गई। बेतिया महाराज राजा गजसिंह द्वारा भी इस विद्या को बढ़ाने में बहुत सहायता दी गई। 1936 में हुए मुजफ्फरपुर में अखिल भारतीय संगीत समारोह में श्री कुंज बिहारी जी का गायन इतना प्रसिद्ध हुआ कि इसकी गूंज देश- विदेश हर जगह फैली। कहा जाता है श्री जयशंकर मिश्र जी को 2,000 से अधिक ध्रुपद याद थे।

बनारस घराना जहां  शिष्य परंपरा पर आधारित था, बेतिया घराना वंश परंपरा पर आधारित रहा। 

वर्तमान में  नंदकिशोर मिश्र और उनका पूरा परिवार संगीत  महाविद्या की सेवा में लगा हुआ है।परंतु सरकारी उपेक्षा और लोगों की अपनी विरासत के प्रति अनदेखी ने बेतिया घराने को वह प्रसिद्धि ना दिलाई, जिसकी वह हकदार है। नंदकिशोर मिश्र और परिवार संसाधन की कमी के बावजूद संगीत इस महान विद्या को जीवित रखने की कोशिश में लगे हैं।


जरूरत सरकार और संगीत प्रेमी दोनों को जागने की है। इतनी महान संगीत परंपरा को हम ऐसे खो नहीं सकते। सरकार द्वारा संगीत महाविद्यालय की स्थापना कर ऐसे महान परंपराओं को संजोने की जरूरत है। हमारा भी फर्ज बनता है हम सब आगे आएं और अपने इस ऐतिहासिक धरोहर को विश्व पटल पर पुनः पहचान दिलवाए, जिसकी यह वास्तविक हकदार है।

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