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हां मैं गौरवशाली अद्वितीय ऐतिहासिक गौरवशाली अनुपम बिहार हूं।
मिथिला का अमर इतिहास दिया मैंने, मां सीता जैसी पुत्री पाकर गौरवांवित हूं, हां मैं एक सभ्य सुसज्जित पिता तुल्य बिहार हूं। मंडन मिश्र का शास्त्रार्थ हूं , सुश्रुत ने दी सर्जरी का ज्ञान विश्व को। बाल्मीकि का ज्ञान मैं ही, लव कुश का अभिमान हूं। हां मैं ज्ञानी अभिमानी ज्ञानदीप बिहार हूं। महावीर को जन्म दिया मैंने, सिद्धार्थ भी यहां बौद्ध बन जाता है। चाणक्य सा गुरु दिया हमने, आर्यभट्ट का महान ज्ञान हूं। हां मैं गौरवशाली वैभवशाली बिहार हूं। मगध सा राज्य ना हुआ कभी, महान अशोक सा अहिंसक दानी हूं। हां मैं अद्भुत अतुलनीय बिहार हुं। नालंदा की ज्ञान गंगा मुझसे ही निकली, हां मैं हमेशा लहराने वाला विक्रमशिला का ज्ञान पताका हूं। हेनसांग को दी जिसने पहचान। हां मैं ही वह ज्ञान गंगा बिहार हूं। दरभंगा महाराज का दान हूं मैं, कुंवर सिंह की वीर पुकार हूं। देवकीनंदन खत्री का चंद्रकांता का तिलिस्म हूं मैं बाबा नागार्जुन का संसार हूं। हां मैं गौरवशाली बिहार हूं। गुरु गोविंद को जन्म दिया, सतनाम वाहेगुरु की मधुर आवाज हूं।...
गुरु पूर्णिमा और गुरु शिष्य परंपरा।
संत तुलसीदासजी ने भी रामचरितमानस में लिखा है, गुरु बिनु भवनिधि तरइ ना कोई| जों बिरंचि संकर सम कोई|| अर्थात कोई यदि ब्रह्मा शंकर के सामान भी हो तो भी बगैर गुरु के वह भवसागर पार नहीं कर सकता। क्या कथन अपने आप में गुरु की महत्ता बताने के लिए काफी है। कि अगर आप भगवान भी हैं तो आपको भी गुरु की जरूरत है। गुरु में गु शब्द का अर्थ है अहंकार (अज्ञान) और रू शब्द का अर्थ है प्रकाश (ज्ञान)। अर्थात अज्ञान अंधकार को नष्ट कर जो ब्रह्म रूपी प्रकाश प्रदान करें वही गुरु है। गुरु शिष्य परंपरा की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें गुरु शिष्य से अलग-अलग ना होकर एक दूसरे के पूरक है। जैसे गुरु द्रोण के बिना अर्जुन की कल्पना नहीं हो सकती वैसे ही अर्जुन के बगैर गुरु द्रोण की। दोनों साथ न होते तो इतने महान नहीं होते। हमारे पास ऐसे असंख्य उदाहरण है जो गुरु शिष्य परंपरा की महानता को व्यक्त करते हैं, गोविंद पाद - शंकराचार्य, रामनाथ - शिवाजी, प्राणनाथ - छत्रसाल, रामकृष्ण परमहंस - विवेकानंद, चाणक्य - चंद्रगुप्त, वर्तमान में रामाकांत अचरेकर - सचिन तेंदुलकर, गोपी चंद - पीवी सिंधु। इन नामों को एक दूसरे से अलग अलग देखना श...
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