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Showing posts from July, 2021

कोरोना और टूटकर घर लौटी जिंदगियां

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  उड़ चला दाने की खोज में एक तूफान ने उसका घोंसला ही उड़ा दिया। कुछ तस्वीरें हमारे जेहन में ऐसी छाप छोड़ जाती हैं जिन को मिटाना संभव ही नहीं होता। कोरोना प्रसार के बाद लगे पहले लॉकडाउन के समय वह दिल्ली व मुंबई की रेलवे स्टेशन बस स्टॉप की वह हताश सी घर को लौटने को बेबस सी भिड़ को कौन भूल सकता है। वह हजारों किलोमीटर पैदल चलकर घर जाने की कोशिश कौन भूल सकता है। कौन भूल सकता है उस मार्मिक दृश्य को, वह बेबसी वह हताशा वह सब खो जाने का डर चेहरे से साफ नजर आते थे। दूसरे कोरोना के लहर ने इस बेबसी की तस्वीर में और अधिक स्याह रंग भर दिया। वह टूट के लौटती जिदगियां वह हिम्मत से हारी जिंदगी वह बेबसी वह लाचारी वह घर लौटने के बाद बेरोजगारी का डर। क्या फिर से अपनी जिंदगी शुरु कर पाएंगे क्या पहले जैसे हो पाएंगे सब खो जाने का डर। इस कोरोना ने ना जाने कितनी उम्मीद की कहानियों को कुचल दिया। सरकारों के पास भी मजबूरी थी इतने बड़े भयावह बीमारी को रोकने का लॉकडाउन ही कारगर उपाय था दम तोड़ती जिंदगी को बचाना सबसे पहला कर्म था। कोरोना काल में सभी सरकारों स्वयंसेवी संस्थाओं ने जितना हो सका खुद से कोशिश की। पर इ...

हां मैं गौरवशाली अद्वितीय ऐतिहासिक गौरवशाली अनुपम बिहार हूं।

  मिथिला का अमर इतिहास दिया मैंने,  मां सीता जैसी पुत्री पाकर गौरवांवित हूं,  हां मैं एक सभ्य सुसज्जित पिता तुल्य बिहार हूं।   मंडन मिश्र का शास्त्रार्थ हूं , सुश्रुत ने दी सर्जरी का ज्ञान विश्व को।  बाल्मीकि का ज्ञान मैं ही, लव कुश का अभिमान हूं। हां मैं ज्ञानी अभिमानी ज्ञानदीप बिहार हूं।  महावीर को जन्म दिया मैंने, सिद्धार्थ भी यहां बौद्ध बन जाता है।  चाणक्य सा गुरु दिया हमने, आर्यभट्ट का महान ज्ञान हूं। हां मैं गौरवशाली वैभवशाली बिहार हूं।   मगध सा राज्य ना हुआ कभी, महान अशोक सा अहिंसक दानी हूं।  हां मैं अद्भुत अतुलनीय बिहार हुं।  नालंदा की ज्ञान गंगा मुझसे ही निकली, हां मैं हमेशा लहराने वाला विक्रमशिला का ज्ञान पताका हूं। हेनसांग को दी जिसने पहचान। हां मैं ही वह ज्ञान गंगा बिहार हूं।  दरभंगा महाराज का दान हूं मैं, कुंवर सिंह की वीर पुकार हूं। देवकीनंदन खत्री का चंद्रकांता का तिलिस्म हूं मैं बाबा नागार्जुन का संसार हूं। हां मैं गौरवशाली बिहार हूं।   गुरु गोविंद को जन्म दिया, सतनाम वाहेगुरु की मधुर आवाज हूं।...

Increasing lightning and Climate Change

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  These days we are seeing an unexpected phenomenon that is extreme thunder lightning.Lightning kills more people than cyclones in India, says the Earth Networks India Lightning Report, 2019. And it could increase as much as 12% with every 1 degree increase in global warming. According to LRIC report 18.5 mil lightning strikes were recorded in India between April 2020 to march 2021, which is 34 % higher than previous year. In India 1697 people died due to lighting between April 2020 to March 2021. Bihar witness 404 casualties, UP have 228 casualties. In one year Punjab 331 percent, Bihar 168%, Himachal 164% and Pondicherry witness 117% increas in lightning strike incidents. This is not mere a data but a worrying trend and giving a dark future perspective. Arctic which is a cold area research said that in 2010 average light strikes in this area is 35000, but in 2020 it is approx 240000. this is a devastating trend. These are some questions, which comes to our mind, why lightning inc...

विकास की शोर में ऊंघते गांव।

  भारत गांवों का देश रहा है। ग्रामीण जीवन की सुंदरता एवं ग्रामीण संस्कृति भारत को विशेष पहचान देते हैं। गांव की संस्कृति एवं खूबसूरती बचाते हुए उनका विकास समय की मांग है। अंधाधुन दौर में हमारे गांव कहीं बहुत पीछे छूटते जा रहे हैं। गांव विकास की दौड़ में कहीं ऊंघ से रहे हैं। जो विकास हो भी रहा है वह गांव के पारंपरिक स्वरूप को धीरे-धीरे नष्ट करता जा रहा है। शहरी जीवन के आश ने ऐसे पलायन को जन्म दिया है, जिसने रामू अब्दुल सब को गांव से दूर कर दिया है। बूढ़े मां बाप की इंतजार करती आंखें हर गांव का सबब बन गई हैं परंतु जो बच्चे रोजगार और शिक्षा की आस में एक बार अपने घोसले से निकल जाते हैं कहां लौट के आ पाते हैं। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से ही अगर गांव की ओर विशेष ध्यान दिया गया होता तो आज यह स्थिति ना होती। सरकारी योजनाएं बनती भी रहे विकास के नारे लगते भी रहे परंतु इस विकास के शोर में गांव कभी आ ही ना पाए। सरकारों द्वारा गांव के विकास के लिए बहुत सी योजनाएं लाई गई। जिनके कारण धीरे-धीरे गांव में विकास देखा भी गया गांव में सड़क बिजली जैसी सुविधाएं भी पहुंची परंतु जो गांधी जी का वास्तविक ग...

मैं आज भी घर से बेघर हूं मैं एक कश्मीरी पंडित हूं।

हमने कभी उठाया ही क्या अपने हाथों में तिरंगे के सिवा, ए मादरे वतन हमने तुमसे मांगा ही क्या अपने कश्मीर में एक घोंसले के सिवा। दिल्ली हो मुंबई हो या हो जम्मू ,कश्मीरी दम आलू तो आज भी बनते हैं रोगन जोश की खुशबू आज भी आती है लेकिन जब किसी कश्मीरी पंडित से बात करें तो कहेंगे "इन खानों में अब वो एहसास नहीं मिलता, अब हमारे अंदर हमारा वो खोया कश्मीर नहीं मिलता।कई लोगों को कहते सुना होगा जो कश्मीरी पंडित तो पहले से बेहतर स्थिति में है दिल्ली मुंबई जैसे बड़े शहरों में, अच्छी जिंदगी जी रहे हैं पर शायद वो लोग उनके आंखों का दर्द और बेबसी नहीं देख पाते हैं। चिड़ियाघर में जब जंगल से शेर को लाया जाता है उसको सारी सुविधाएं दे दी जाती है  बगैर शिकार किए भी उसे भोजन मिल जाता है वह पूरी आराम की जिंदगी जीता है पर कभी आपने उस शेर की आंखों को ध्यान से देखा है उसमे आपको अकेलापन, अपने जंगल से दूर हो जाने का, बंद पड़ी जिंदगी का दर्द साफ नजर आता है । इसी तरह कश्मीरी पंडित कहीं रहे पर जो एहसास जो पहचान उनको कश्मीर देता है वह कोई भी सुख सुविधा और कोई भी मिट्टी नहीं दे सकती।1990 में जो नरसंहार हुआ उसकी सच्चाई...

गुरु पूर्णिमा और गुरु शिष्य परंपरा।

संत तुलसीदासजी ने भी रामचरितमानस में लिखा है, गुरु बिनु भवनिधि तरइ ना कोई| जों बिरंचि संकर सम कोई|| अर्थात कोई यदि ब्रह्मा शंकर के सामान भी हो तो भी बगैर गुरु के वह भवसागर पार नहीं कर सकता। क्या कथन अपने आप में गुरु की महत्ता बताने के लिए काफी है। कि अगर आप भगवान भी हैं तो आपको भी गुरु की जरूरत है। गुरु में गु शब्द का अर्थ है अहंकार (अज्ञान) और रू शब्द का अर्थ है प्रकाश (ज्ञान)। अर्थात अज्ञान अंधकार को नष्ट कर जो ब्रह्म रूपी प्रकाश प्रदान करें वही गुरु है। गुरु शिष्य परंपरा की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें गुरु शिष्य से अलग-अलग ना होकर एक दूसरे के पूरक है। जैसे गुरु द्रोण के बिना अर्जुन की कल्पना नहीं हो सकती वैसे ही अर्जुन के बगैर गुरु द्रोण की। दोनों साथ न होते तो इतने महान नहीं होते। हमारे पास ऐसे असंख्य उदाहरण है जो गुरु शिष्य परंपरा की महानता को व्यक्त करते हैं, गोविंद पाद - शंकराचार्य, रामनाथ - शिवाजी, प्राणनाथ - छत्रसाल, रामकृष्ण परमहंस - विवेकानंद, चाणक्य - चंद्रगुप्त, वर्तमान में रामाकांत अचरेकर - सचिन तेंदुलकर, गोपी चंद - पीवी सिंधु। इन नामों को एक दूसरे से अलग अलग देखना श...

राजद्रोह कानून एवं अभिव्यक्ति की आजादी

राजद्रोह कानून की संवैधानिक वैधता को लेकर फिर से सवाल उठने लगे हैं। कई वरिष्ठ पत्रकारों द्वारा सुप्रीम कोर्ट में इसके विरूद्ध याचिका दायर की गई है। उनका कहना है कि इस कानून का दुरुपयोग पत्रकारों बुद्धिजीवियों को चुप कराने के लिए किया जाता है। साथ ही यह संवैधानिक मौलिक अधिकार अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार के विरुद्ध है।इससे पूर्व पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टी संस्था की तरफ से भी इस विषय में याचिका दायर करते हुए कहा गया कि भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में इस प्रकार के दमनकारी कानून की कोई जगह नहीं है। क्या है राजद्रोह कानून यह कानून 1860 में अंग्रेजों द्वारा स्वतंत्रता संघर्ष पर लगाम लगाने के लिए लाया गया था। यह आईपीसी  की धारा 124a में दर्ज है। इसमें आजीवन कारावास तक सजा का प्रावधान है और यह एक गैर जमानती अपराध है। 124a की व्याख्या बहुत ही अस्पष्ट है “बोले लिखे शब्दों दृश्य प्रस्तुति द्वारा कोई भी भारत में विधि द्वारा स्थापित सरकार के विरुद्ध गिरना असंतोष उत्पन्न करेगा" यह परिभाषा अपने आप में इतनी पेचीदा है कि यह सरकारों को इनके व्यापक दुरुपयोग का मौका देती है। स्वतंत्रता संघर्ष के...