कोरोना और टूटकर घर लौटी जिंदगियां
उड़ चला दाने की खोज में एक तूफान ने उसका घोंसला ही उड़ा दिया। कुछ तस्वीरें हमारे जेहन में ऐसी छाप छोड़ जाती हैं जिन को मिटाना संभव ही नहीं होता। कोरोना प्रसार के बाद लगे पहले लॉकडाउन के समय वह दिल्ली व मुंबई की रेलवे स्टेशन बस स्टॉप की वह हताश सी घर को लौटने को बेबस सी भिड़ को कौन भूल सकता है। वह हजारों किलोमीटर पैदल चलकर घर जाने की कोशिश कौन भूल सकता है। कौन भूल सकता है उस मार्मिक दृश्य को, वह बेबसी वह हताशा वह सब खो जाने का डर चेहरे से साफ नजर आते थे। दूसरे कोरोना के लहर ने इस बेबसी की तस्वीर में और अधिक स्याह रंग भर दिया। वह टूट के लौटती जिदगियां वह हिम्मत से हारी जिंदगी वह बेबसी वह लाचारी वह घर लौटने के बाद बेरोजगारी का डर। क्या फिर से अपनी जिंदगी शुरु कर पाएंगे क्या पहले जैसे हो पाएंगे सब खो जाने का डर। इस कोरोना ने ना जाने कितनी उम्मीद की कहानियों को कुचल दिया। सरकारों के पास भी मजबूरी थी इतने बड़े भयावह बीमारी को रोकने का लॉकडाउन ही कारगर उपाय था दम तोड़ती जिंदगी को बचाना सबसे पहला कर्म था। कोरोना काल में सभी सरकारों स्वयंसेवी संस्थाओं ने जितना हो सका खुद से कोशिश की। पर इ...